महिला दिवस के अवसर पर कविता
नारी सन्मान... हे नारी तेरी महिमा को मैं किन शब्दों में गाऊं तेरी तपस्या की महिमा शब्दों में कर ना पाऊँ अपनी खुशियां भुलाकर तूँ सुख सबको देती पौंछकर आंखों से आंसू दुख सबके हर लेती शिव शक्ति का टाइटल तुमने यूँ ही नहीं पाया सहनशक्ति की मिसाल कोई और दे ना पाया तेरी पूजा करते जन जन मन्दिर तेरा बनाकर सफल होते कर्म सभी के तुझसे शक्ति पाकर तेरी गौरव गाथाएं कोई एक दो नहीं हजार है एक तेरे बलिदान पर ही टिका हुआ संसार है प्यार नहीं देती केवल जीना भी हमें सिखाती विघ्नों के आगे तूँ ढ़ाल बनकर खड़ी हो जाती उलझी बातें सुलझाकर जीवन सरल बनाती अपने शुद्ध व्यवहार से निर्मल प्यार बरसाती हो कोई भी प्राणी नारीत्व उसमें भी समाया नारी को सम्मानित करने वाले ने सुख पाया नारी घर की रौनक है नारी समाज का श्रृंगार निस्वार्थ भावना से नारी लुटाती सब पर प्यार नारी में देखो दैवी रूप कर लो इसका सम्मान पाप नहीं चढ़ाओ तुम करके इसका अपमान मात्र नारी ही समाज को संस्कारवान बनाएगी नारी की त्याग तपस्या स्वर्ग धरती पर लाएगी आओ मन में नारी के प्रति पूरा सम्मान जगाएं फ