सांचे में रोज ढ़लता जा ...

सांचे में रोज ढ़लता जा ...

नफरत भरे संसार में तूँ शमा बनकर जलता जा
लोगों की अदावतों को मोहब्बत में बदलता जा

शौक रखता है तूँ दुनिया में कुछ करने का अगर
चिराग़े मंजिल बनकर हर रस्ता रोशन करता जा

तेरी दुआ ज़रूर क़ुबूल होगी ख़ुदा के दरबार में
उसके नक्शे कदम पर बिना रुके तूँ चलता जा

सदियों तक नहीं भूल पाएगा ये जमाना तुझको
खुदा की बन्दग़ी में मोम की तरह पिघलता जा

तेरी नजर पड़े जिस पर वो नेकनीयत बन जाए
खुदा का हुस्न बनकर तूँ चारों और महकता जा

दुनिया को दोज़ख से जन्नत बदलने की खातिर
खुदा के बनाए रूहानी सांचे में रोज ढ़लता जा

Comments

Popular posts from this blog

◾संघर्ष कथा :- एका आदिवासी जमातीतील कलेक्टर डॉ. राजेंद्र भारूडची ही संघर्ष कथा एकदा नक्की वाचा,खरचं प्रेरणा मिळेल ...

◼️प्रेरणा :- 🧐 जसा विचार कराल तसेच घडत जाईल | Law of attraction ...

देतो तो देव - बोधकथा

कविता :- 📝 पत्र शेवटचं लिहितो आहे ...

हिरव्या हिरव्या श्रावणात ... | मराठी कविता | संजय धनगव्हळ

◼️ ललित लेख :- शेवटी काय सोबत घेऊन गेला तो भिकारी ...

◼️ कृषी :- शेतकऱ्यांच्या माहितीसाठी विविध लेख...

◾कविता :- नवरा माझा

◾ललित लेख :- स्ञी

◾विशेष लेख :- विक्रम साराभाई यांचा एक सत्य किस्सा अवश्य वाचा !