नरेंद्र मोदींच्या कविता
1.मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा यह कविता की अवसरों पर प्रधानमंत्री ने जनता के सामने सुनाई है।
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
मैं देश नहीं झुकने दूंगा
मेरी धरती मुझसे पूछ रही कब मेरा कर्ज चुकाओगे
मेरा अंबर पूछ रहा कब अपना फर्ज निभा ओगे
मेरा वचन है भारत मां को तेरा शीश नहीं झुकने दूंगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
वे लूट रहे हैं सपनों को मैं चैन से कैसे सो जाऊं
वे बेच रहे हैं भारत को खामोश मैं कैसे हो जाऊं
वे लूट रहे हैं सपनों को मैं चैन से कैसे सो जाऊं
वे बेच रहे हैं भारत को खामोश मैं कैसे हो जाऊं
हां मैंने कसम उठाई है मैं देश नहीं बिकने नहीं दूंगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
वो जितने अंधेरे लाएंगे मैं उतने उजाले लाऊंगा
वो जितनी रात बढ़ाएंगे मैं उतने सूरज उगाऊंगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
वो जितने अंधेरे लाएंगे मैं उतने उजाले लाऊंगा
वो जितनी रात बढ़ाएंगे मैं उतने सूरज उगाऊंगा
इस छल-फरेब की आंधी में मैं दीप नहीं बुझने दूंगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
वे चाहते हैं जागे न कोई बस रात का कारोबार चले
वे नशा बांटते जाएं और देश यूं ही बीमार चले
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
वे चाहते हैं जागे न कोई बस रात का कारोबार चले
वे नशा बांटते जाएं और देश यूं ही बीमार चले
पर जाग रहा है देश मेरा हर भारतवासी जीतेगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
मांओं बहनों की अस्मत पर गिद्ध नजर लगाए बैठे हैं
मैं अपने देश की धरती पर अब दर्दी नहीं उगने दूंगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
मांओं बहनों की अस्मत पर गिद्ध नजर लगाए बैठे हैं
मैं अपने देश की धरती पर अब दर्दी नहीं उगने दूंगा
मैं देश नहीं रुकने दूंगा सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
अब घड़ी फैसले की आई हमने है कसम अब खाई
अब घड़ी फैसले की आई हमने है कसम अब खाई
हमें फिर से दोहराना है और खुद को याद दिलाना है
न भटकेंगे न अटकेंगे कुछ भी हो इस बार
हम देश नहीं मिटने देंगे सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश
नहीं मिटने दूंगा।
न भटकेंगे न अटकेंगे कुछ भी हो इस बार
हम देश नहीं मिटने देंगे सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश
नहीं मिटने दूंगा।
2.
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
3.
समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेलामारा तमनममां उभरे तरणेतरना मेणा
कोई पासे नहीं लेवुंदेवुं: कदी होय नहीं मारुंन्तारुं
आ दुनियामां जे कैं छे के मनगमतुं मणियारुं
रस्तो मारो सीधोसाधो: नहीं भीड़: नहीं ठेलमठेला
समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला
कोई पंथ नहीं: नहीं संप्रदाय: माणस ऐ तो माणस,
अजवाणामां फरक पड़े शुं? कोडियुं हय के फानस
झणांझणां झुम्भरनी जेवां क्यारेच नहीं लटकेला
समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला
मारा आ तमनममां उभरे तरणेतरना मेणा
कोई पासे नहीं लेवुंदेवुं: कदी होय नहीं मारुंन्तारुं
आ दुनियामां जे कैं छे के मनगमतुं मणियारुं
रस्तो मारो सीधोसाधो: नहीं भीड़: नहीं ठेलमठेला
समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला
कोई पंथ नहीं: नहीं संप्रदाय: माणस ऐ तो माणस,
अजवाणामां फरक पड़े शुं? कोडियुं हय के फानस
झणांझणां झुम्भरनी जेवां क्यारेच नहीं लटकेला
समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला
4.
अपने मन में एक लक्ष्य लिए
मंज़िल अपनी प्रत्यक्ष लिए
हम तोड़ रहे हैं जंजीरें
हम बदल रहे हैं तस्वीरें
ये नवयुग है, नव भारत है
खुद लिखेंगे अपनी तकदीरें
हम निकल पड़े हैं प्रण करके
अपना तन-मन अर्पण करके
जिद है एक सूर्य उगाना है
अम्बर से ऊँचा जाना है
एक भारत नया बनाना है
एक भारत नया बनाना है