अहिंसा का वास्तविक स्वरूप
*अहिंसा का मतलव केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं किसी के प्रण का और किसी के उसूलों का रक्षण करना भी है। अहिंसा, अर्थात वो मानसिकता जिसमे प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार हो।*
*किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा का कर्म करने का अधिकार मिले चाहे ना मिले पर अपनी इच्छा को अभिव्यक्त करने का अधिकार जरूर होना चाहिए। अहिंसा का सम्बन्ध किसी के शरीर को आघात पहुँचाने से ही नहीं किसी के दिल को आघात पहुँचाने से भी है।*
*किसी के दिल को दुखाना भी बहुत बड़ी हिंसा है। गोली से तो शरीर जख्मी होता है आदमी की ख़राब वोली से आत्मा तक हिल जाती है। अतः अहिंसा केवल आचार में ही नहीं विचार और बोली में भी रखना परमावश्यक है।*
।।जय श्री राधे कृष्णा जी।।
असेच लेख.
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